कहते हैं तपस्या में बैठे भगवान शिव के पसीने से नर्मदा नदी प्रकट हुई। नर्मदा ने प्रकट होते ही अपने अलौकिक सौंदर्य से ऐसी चमत्कारी लीलाएं प्रस्तुत की कि खुद शिव-पार्वती चकित रह गए।
तभी उन्होंने नामकरण करते हुए कहा- देवी, तुमने हमारे दिल को हर्षित कर दिया। इसलिए तुम्हारा नाम हुआ नर्मदा। नर्म का अर्थ है- सुख और दा का अर्थ है- देने वाली। इसका एक नाम रेवा भी है, लेकिन नर्मदा ही सर्वमान्य है।
मैखल पर्वत पर भगवान शंकर ने 12 वर्ष की दिव्य कन्या को अवतरित किया महारूपवती होने के कारण विष्णु आदि देवताओं ने इस कन्या का नामकरण नर्मदा किया। इस दिव्य कन्या नर्मदा ने उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर काशी के पंचक्रोशी क्षेत्र में 10,000 दिव्य वर्षों तक तपस्या करके प्रभु शिव से कुछ ऐसे वरदान प्राप्त किए जो कि अन्य किसी नदी के पास नहीं है – जैसे,
* प्रलय में भी मेरा नाश न हो।
* मैं विश्व में एकमात्र पाप-नाशिनी नदी के रूप में प्रसिद्ध रहूं।
* मेरा हर पाषाण (नर्मदेश्वर) शिवलिंग के रूप में बिना प्राण-प्रतिष्ठा के पूजित हो।
* मेरे (नर्मदा) तट पर शिव-पार्वती सहित सभी देवता निवास करें।
स्कंद पुराण में वर्णित है कि राजा-हिरण्यतेजा ने चौदह हजार दिव्य वर्षों की घोर तपस्या से शिव भगवान को प्रसन्न कर नर्मदा जी को पृथ्वी तल पर आने के लिए वर मांगा। शिव जी के आदेश से नर्मदा जी मगरमच्छ के आसन पर विराज कर उदयाचल पर्वत पर उतरीं और पश्चिम दिशा की ओर बहकर गईं।
नर्मदा तत्वों की पराकाष्टा है…….
ॐ नर्मदे हर ||
रेवा श्नातवा नरो नारी पूजयित्वा महेश्वरं |
पापदोसविनिर्मुक्तो ब्रह्मलोके महीयते ||
श्री नर्मदा मात्र नदी नहीं है, नर्मदा समस्त तत्वों की जननी है |
श्री नर्मदा आनंद तत्व, ज्ञान तत्व, सिद्धि तत्व, मोक्ष तत्व तथा समस्त तत्वों की अधिष्टात्री देवी है |
नर्मदा समस्त देव, ऋषि, मुनि, मानवो को शास्वत सुख-शांति प्रदान कर अजर -अमर बनाती है !
जहाँ सुख शान्ति है वहा नर्मदा है तथा जहाँ नर्मदा है वहां सुख -शान्ति है और इसी आत्म शांति को प्राप्त करने की लिए, आदि काल से ही योगी, साधु, संत, ग्रहस्त नर्मदा का आश्रय लेने आते थे !
हर्ष दायनी नर्मदा की सिद्ध जल का अवगाहन कर असंख साधारण मानव भी सिद्ध संत, सिद्ध ऋषि,सिद्ध योगी, सिद्ध सिद्ध सिद्ध तथा सिद्ध पुरुस बनकर विश्व विख्यात हो गये हैं !
पुराण प्रमाण है की,नर्मदा से दिव्य – ज्ञान -प्राप्त करके है बाल्मीकि तथा व्यास जी ने अदभुत अलोकिक आदि महाकाव्य एवं पुराणोंकी रचना की थी ! भगवान के अवतारों का आदि कारणभूता नर्मदा ही थीं !
केवल देव,ऋषि,मुनि,मानव ही नहीं अपितु, मय दानव का शिल्प दैत्यराज बलि का विशाल भव, राक्षस राज रावण की शिव -भक्ति एवं नाभिगत अमृत का इन सबकी आदि कारणभूता माता नर्मदा ही हैं !
श्री नर्मदा के सृजन- आविभार्व के बाद, उमा सहित शिव अपनी आत्मज़ा क्रिया शक्ति नर्मदा को, कल्याण सम्बन्धी अपना कार्य भार सौपकर, कुछ निश्चिन्त से हो गये थे !
शिव पार्वती ने आत्मजा नर्मदा की महिमा, महत्त्व, त्रय्लोक्य में स्वयं ही प्रस्थापित की थी अत: शिव शक्ति की कृपा दर्शन प्राप्त करने के पहिले, श्री नर्मदा की कृपानुमति अत्यावश्यक है क्योंकि नर्मदा, शिव-शक्ति की क्रिया – शक्ति हैं ! नर्मदा-शिव- कल्याण प्राप्ति का द्वार हैं ! नर्मदा की कृपा होने पर ही शिव कल्याण, सिद्धि,मौक्ष की प्राप्ति हो सकती है !
विश्व में नर्मदा ही एक ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है और पुराणों के अनुसार जहाँ गंगा में स्नान से जो फल मिलता है नर्मदा के दर्शन मात्र से ही उस फल की प्राप्ति होती है। नर्मदा नदी पुरे भारत की प्रमुख नदियों में से एक ही है जो पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है।
त्रिभिः सारस्वतं तोयं, सप्ताहेन तु यामुनम् ।
सद्यः पुनाति गाङ्गेयं, दर्शनादेवि नर्मदा ॥
सरस्वती का जल तीन दिनों में, यमुना का जल ७ दिनों में या सात बार स्नान करने पर, श्री गंगा का जल १ बार स्नान करने में पवित्र करता है किन्तु श्री नर्मदा जी का जल केवल दर्शन मात्र से ही पवित्र कर देता है |
नर्मदा, समूचे विश्व में दिव्य व रहस्यमयी नदी है,इसकी महिमा का वर्णन चारों वेदों की व्याख्या में श्री विष्णु के अवतार वेदव्यास जी ने स्कन्द पुराण के रेवाखंड़ में किया है। इस नदी का प्राकट्य ही, विष्णु द्वारा अवतारों में किए राक्षस-वध के प्रायश्चित के लिए ही प्रभु शिव द्वारा अमरकण्टक (जिला शहडोल, मध्यप्रदेश जबलपुर-विलासपुर रेल लाईन-उडिसा मध्यप्रदेश ककी सीमा पर) के मैकल पर्वत पर कृपा सागर भगवान शंकर द्वारा १२ वर्ष की दिव्य कन्या के रूप में किया गया। महारूपवती होने के कारण विष्णु आदि देवताओं ने इस कन्या का नामकरण नर्मदा किया।
इस दिव्य कन्या नर्मदा ने उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर काशी के पंचक्रोशी क्षेत्र में १०,००० दिव्य वर्षों तक तपस्या करके प्रभु शिव से निम्न ऐसे वरदान प्राप्त किये जो कि अन्य किसी नदी और तीर्थ के पास नहीं है :
प्रलय में भी मेरा नाश न हो। मैं विश्व में एकमात्र पाप-नाशिनी प्रसिद्ध होऊँ, यह अवधि अब समाप्त हो चुकी है। मेरा हर पाषाण (नर्मदेश्वर) शिवलिंग के रूप में बिना प्राण-प्रतिष्ठा के पूजित हो। विश्व में हर शिव-मंदिर में इसी दिव्य नदी के नर्मदेश्वर शिवलिंग विराजमान है। कई लोग जो इस रहस्य को नहीं जानते वे दूसरे पाषाण से निर्मित शिवलिंग स्थापित करते हैं ऐसे शिवलिंग भी स्थापित किये जा सकते हैं परन्तु उनकी प्राण-प्रतिष्ठा अनिवार्य है। जबकि श्री नर्मदेश्वर शिवलिंग बिना प्राण के पूजित है। मेरे (नर्मदा) के तट पर शिव-पार्वती सहित सभी देवता निवास करें।
सभी देवता, ऋषि मुनि, गणेश, कार्तिकेय, राम, लक्ष्मण, हनुमान आदि ने नर्मदा तट पर ही तपस्या करके सिद्धियाँ प्राप्त की। दिव्य नदी नर्मदा के दक्षिण तट पर सूर्य द्वारा तपस्या करके आदित्येश्वर तीर्थ स्थापित है। इस तीर्थ पर (अकाल पड़ने पर) ऋषियों द्वारा तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर दिव्य नदी नर्मदा १२ वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हो गई तब ऋषियों ने नर्मदा की स्तुति की। तब नर्मदा ऋषियों से बोली कि मेरे (नर्मदा के) तट पर देहधारी सद्गुरू से दीक्षा लेकर तपस्या करने पर ही प्रभु शिव की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है। इस आदित्येश्वर तीर्थ पर हमारा आश्रम अपने भक्तों के अनुष्ठान करता है।
नर्मदा नदी को लेकर कई लोक कथायें प्रचलित हैं एक कहानी के अनुसार नर्मदा जिसे रेवा के नाम से भी जाना जाता है और राजा मैखल की पुत्री है। उन्होंने नर्मदा से शादी के लिए घोषणा की कि जो राजकुमार गुलबकावली के फूल उनकी बेटी के लिए लाएगा, उसके साथ नर्मदा का विवाह होगा। सोनभद्र यह फूल ले आए और उनका विवाह तय हो गया। दोनों की शादी में कुछ दिनों का समय था।
नर्मदा सोनभद्र से कभी मिली नहीं थीं। उन्होंने अपनी दासी जुहिला के हाथों सोनभद्र के लिए एक संदेश भेजा। जुहिला ने नर्मदा से राजकुमारी के वस्त्र और आभूषण मांगे और उसे पहनकर वह सोनभद्र से मिलने चली गईं। सोनभद्र ने जुहिला को ही राजकुमारी समझ लिया। जुहिला की नियत भी डगमगा गई और वह सोनभद्र का प्रणय निवेदन ठुकरा नहीं पाई।
काफी समय बीता, जुहिला नहीं आई, तो नर्मदा का सब्र का बांध टूट गया। वह खुद सोनभद्र से मिलने चल पड़ीं। वहां जाकर देखा तो जुहिला और सोनभद्र को एक साथ पाया। इससे नाराज होकर वह उल्टी दिशा में चल पड़ीं। उसके बाद से नर्मदा बंगाल सागर की बजाय अरब सागर में जाकर मिल गईं।
एक अन्य कहानी के अनुसार सोनभद्र नदी को नद (नदी का पुरुष रूप) कहा जाता है। दोनों के घर पास थे। अमरकंटक की पहाडिय़ों में दोनों का बचपन बीता। दोनों किशोर हुए तो लगाव और बढ़ा। दोनों ने साथ जीने की कसमें खाई, लेकिन अचानक दोनों के जीवन में जुहिला आ गई। जुहिला नर्मदा की सखी थी। सोनभद्र जुहिला के प्रेम में पड़ गया। नर्मदा को यह पता चला तो उन्होंने सोनभद्र को समझाने की कोशिश की, लेकिन सोनभद्र नहीं माना। इससे नाराज होकर नर्मदा दूसरी दिशा में चल पड़ी और हमेशा कुंवारी रहने की कसम खाई। कहा जाता है कि इसीलिए सभी प्रमुख नदियां बंगाल की खाड़ी में मिलती हैं,लेकिन नर्मदा अरब सागर में मिलती है।
रामायण तथा महाभारत और परवर्ती ग्रंथों में इस नदी के विषय में अनेक उल्लेख हैं। पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार नर्मदा की एक नहर किसी सोमवंशी राजा ने निकाली थी जिससे उसका नाम सोमोद्भवा भी पड़ गया था। गुप्तकालीन अमरकोशमें भी नर्मदा को ‘सोमोद्भवा’ कहा है। कालिदास ने भी नर्मदा को सोमप्रभवा कहा है। रघुवंश में नर्मदा का उल्लेख है। मेघदूत में रेवा या नर्मदा का सुन्दर वर्णन है।
हर हर नर्मदे……….नर्मदे हर………..
—————————————————————————————————————————————————————————–
नर्मदे हर…नर्मदे हर…नर्मदे हर हर हर…..
नर्मदा माता की असंख्य विशेषताओ में श्री “नर्मदा की कृपा द्रष्टि” से दिखे कुछ कारण यह है :-
नर्मदा सरितां वरा -नर्मदा नदियों में सर्वश्रेष्ट हैं !
नर्मदा तट पर दाह संस्कार के बाद, गंगा तट पर इसलिए नहीं जाते हैं कि, नर्मदा जी से मिलने गंगा जी स्वयं आती है |
नर्मदा नदी पर ही नर्मदा पुराण है ! अन्य नदियों का पुराण नहीं हैं !
नर्मदा अपने उदगम स्थान अमरकंटक में प्रकट होकर, नीचे से ऊपर की और प्रवाहित होती हैं, जबकि जल का स्वभाविक हैं ऊपर से नीचे बहना !
नर्मदा जल में प्रवाहित लकड़ी एवं अस्थिय कालांतर में पाषण रूप में परिवर्तित हो जाती हैं !
नर्मदा अपने उदगम स्थान से लेकर समुद्र पर्यन्त उतर एवं दक्षिण दोनों तटों में,दोनों और सात मील तक प्रथ्बी के अंदर ही अंदर प्रवाहित होती हैं , प्रथ्वी के उपर तो वे मात्र दर्शनार्थ प्रवाहित होती हैं | (उलेखनीय है कि भूकंप मापक यंत्रों ने भी प्रथ्बी कीइस दरार को स्वीकृत किया हैं )
नर्मदा से अधिक तीब्र जल प्रवाह वेग विश्व की किसी अन्य नदी का नहीं है |
नर्मदा से प्रवाहित जल घर में लाकर प्रतिदिन जल चदाने से बदता है |
नर्मदा तट में जीवाश्म प्राप्त होते हैं | (अनेक क्षेत्रों के वृक्ष आज भी पाषण रूप में परिवर्तित देखे जा सकते हैं |)
नर्मदा से प्राप्त शिवलिग ही देश के समस्त शिव मंदिरों में स्थापित हैं क्योकि ,शिवलिग केवल नर्मदा में ही प्राप्त होते हैं अन्यत्र नहीं |
नर्मदा में ही बाण लिंग शिव एवं नर्मदेश्वर (शिव ) प्राप्त होते है अन्यत्र नहीं |
नर्मदा के किनारे ही नागमणि वाले मणि नागेश्वर सर्प रहते हैं अन्यत्र नहीं |
नर्मदा का हर कंकड़ शंकर होता है ,उसकी प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती क्योकि , वह स्वयं ही प्रतिष्टित रहता है |
नर्मदा में वर्ष में एक बार गंगा आदि समस्त नदियाँ स्वयं ही नर्मदा जी से मिलने आती हैं |
नर्मदा राज राजेश्वरी हैं वे कहीं नहीं जाती हैं |
नर्मदा में समस्त तीर्थ वर्ष में एक बार नर्मदा के दर्शनार्थ स्वयं आते हैं |
नर्मदा के किनारे तटों पर ,वे समस्त तीर्थ अद्रश्य रूप में स्थापित है जिनका वर्णन किसी भी पुराण, धर्मशास्त्र या कथाओं में आया हैं |
नर्मदा का प्रादुर्भाव स्रष्टि के प्रारम्भ में सोमप नामक पितरों ने श्राद्ध के लिए किया था |
नर्मदा में ही श्राद्ध की उत्पति एवं पितरो द्वारा ब्रम्हांड का प्रथम श्राद्ध हुआ था अतः नर्मदा श्राद्ध जननी हैं |
नर्मदा पुराण के अनुसार नर्मदा ही एक मात्र ऐसी देवी (नदी )हैं ,जो सदा हास्य मुद्रा में रहती है |
नर्मदा तट पर ही सिद्दी प्राप्त होती है| ब्रम्हांड के समस्त देव, ऋषि, मुनि, मानव (भले ही उनकी तपस्या का क्षेत्र कही भी रहा हो) सिद्दी प्राप्त करने के लिए नर्मदा तट पर अवश्य आये है| नर्मदा तट पर सिद्धि पाकर ही वे विश्व प्रसिद्ध हुए|
नर्मदा (प्रवाहित ) जल में नियमित स्नान करने से असाध्य चर्मरोग मिट जाता है |
नर्मदा (प्रवाहित ) जल में तीन वर्षों तक ,प्रत्येक रविवार को नियमित स्नान करने से श्वेत कुष्ठ रोग मिट जाता हैं किन्तु ,कोई भी रविवार खंडित नहीं होना चाहिए |
नर्मदा स्नान से समस्त क्रूर ग्रहों की शांति हो जाती है | नर्मदा तट पर ग्रहों की शांति हेतु किया गया जप पूजन हवन,तत्काल फलदायी होता है |
नर्मदा अपने भक्तों को जीवन काल में दर्शन अवश्य देती हैं ,भले ही उस रूप में हम माता को पहिचान न सके|
नर्मदा की कृपा से मानव अपने कार्य क्षेत्र में ,एक बार उन्नति के शिखर पर अवश्य जाता है |
नर्मदा कभी भी मर्यादा भंग नहीं करती है ,वे वर्षा काल में पूर्व दिशा से प्रवाहित होकर , पश्चिम दिशा के ओर ही जाती हैं अन्य नदियाँ ,वर्षा काल में अपने तट बंध तोडकर ,अन्य दिशा में भी प्रवाहित होने लगती हैं |
नर्मदा पर्वतो का मान मर्दन करती हुई पर्वतीय क्षेत्रमें प्रवाहित होकर जन ,धन हानि नहीं करती हैं (मानव निर्मित बांधों को छोडकर )अन्य नदियाँ मैदानी , रितीले भूभाग में प्रवाहित होकर बाढ़ रूपी विनाशकारी तांडव करती हैं |
नर्मदा ने प्रकट होते ही अपने अद्भुत आलौकिक सौन्दार्य से समस्त सुरों ,देवो को चमत्कृत करके खूव छकाया था | नर्मदा की चमत्कारी लीला को देखकर शिव पर्वती हसते -हसते हाफ्ने लगे थे |
नेत्रों से अविरल आनंदाश्रु प्रवाहित हो रहे थे| उन्होंने नर्मदा का वरदान पूर्वक नामकरण करते हुए कहा – देवी तुमने हमारे ह्रदय को अत्यंत हर्षित कर दिया, अब पृथ्वी पर इसी प्रकार नर्म (हास्य ,हर्ष ) दा(देती रहो ) अतः आज से तुम्हारा नाम नर्मदा होगा |
नर्मदा के किनारे ही देश की प्राचीनतम -कोल ,किरात ,व्याध ,गौण ,भील, म्लेच आदि जन जातियों के लोग रहा करते थे ,वे वड़ेशिव भक्त थे |
नर्मदा ही विश्व में एक मात्र ऐसी नदी हैं जिनकी परिक्रमा का विधान हैं, अन्य नदियों की परिक्रमा नहीं होती हैं|
नर्मदा मनुष्यों को देवत्व प्रदान क्र अजर अम्रर बनाती हैं|
नर्मदा में ६० करोड़, ६०हजार तीर्थ है (कलियुग में यह प्रत्यक्ष द्रष्टिगोचर नहीं होते )
नर्मदा चाहे ग्राम हो या वन, सभी स्थानों में पवित्र हैं जबकि गंगा कनखल में एवं सरस्वती कुरुक्षेत्र में ही ,अधिक पवित्र मानी गई हैं
नर्मदा दर्शन मात्र से ही प्राणी को पवित्र कर देती हैं जबकि ,सरस्वती तीन दिनों तक स्नान से, यमुना सात दिनों तक स्नान से गंगा एक दिन के स्नान से प्राणी को पवित्र करती हैं |
नर्मदा पितरों की भी पुत्री हैं अतः नर्मदा किया हुआ श्राद्ध अक्षय होता है|
नर्मदा शिव की इला नामक शक्ति हैं|
नर्मदा को नमस्कार कर नर्मदा का नामोच्चारण करने से सर्प दंश का भय नहीं रहता है|
नर्मदा के इस मंत्र का जप करने से विषधर सर्प का जहर उतर जाता है|
नर्मदाये नमः प्रातः, नर्मदाये नमो निशि| नमोस्तु नर्मदे तुम्यम, त्राहि माम विष सर्पतह| (प्रातः काल नर्मदा को नमस्कार, रात्रि में नर्मदा को नमस्कार, हे नर्मदा तुम्हे नमस्कार है, मुझे विषधर सापों से बचाओं (साप के विष से मेरी रक्षा करो )
नर्मदा आनंद तत्व ,ज्ञान तत्व सिद्धि तत्व ,मोक्ष तत्व प्रदान कर , शास्वत सुख शांति प्रदान करती हैं |
नर्मदा का रहस्य कोई भी ज्ञानी विज्ञानी नहीं जान सकता है | नर्मदा अपने भक्तो पर कृपा कर स्वयं ही दिव्य द्रष्टि प्रदान करती है |
नर्मदा का कोई भी दर्शन नहीं कर सकता है नर्मदा स्वयं भक्तों पर कृपा करके उन्हें बुलाती है |
नर्मदा के दर्शन हेतु समस्त अवतारों में भगवान् स्वयं ही उनके निकट गए थे |
नर्मदा सुख ,शांति , समर्धि प्रदायनी देवी हैं |
नर्मदा वह अम्र तत्व हैं ,जिसे पाकर मनुष्य पूर्ण तृप्त हो जाता है |
नर्मदा देव एवं पितृ दोनो कार्यों के लिए अत्यंत पवित्र मानी गई हैं |
नर्मदा का सारे देश में श्री सत्यनारायण व्रत कथा के रूप में इति श्री रेवा खंडे कहा जाता है |
श्री सत्यनारायण की कथा अर्थात घर बैठे नर्मदा का स्मरण |
नर्मदा में सदाशिव, शांति से वास करते हैं क्युकी जहाँ नर्मदा हैं और जहां शिव हैं वहां नर्मदा हैं |
नर्मदा शिव के साथ ही यदि अमरकंटक की युति भी हो तो साधक को ल्लाखित लक्ष की प्राप्ति होती हैं नर्मदा के किनारे सरसती के समस्त खनिज पदार्थ हैं|
नर्मदा तट पर ही भगवान् धन्वन्तरी की समस्त औषधीया प्राप्त होती हैं
नर्मदा तट पर ही त्रेता युग में भगवान् श्री राम द्वारा प्रथम वार कुम्वेश्व्र तीर्थ की स्थापना हुई थी जिसमें सह्र्स्ती के समस्त तीर्थों का जल , रिशी मुनियों द्वारा कुम्भो ,घंटों में लाया गया था नर्मदा के त्रिपुरी तीर्थ देश का केंद्र बिंदु भी था
नर्मदा नदी ब्रम्हांड के मध्य भाग में प्रवाहित होती हैं नर्मदा हमारे शरीर रूपी ब्रम्हांड के मध्य भाग (ह्रदय ) को पवित्र करें तो , अष्टदल कमल पर कल्याणकारी सदा शिव स्वयमेव आसीन हो जावेगें|